’दान’ एक वैदिक अवधारणा है, यह मनुष्य के सत्कर्म की अभिव्यक्ति का माध्यम भी है | हमारी पौराणिक कथाये एवं समस्त अध्यात्मिक विचार का ‘दान’ एक महत्वपूर्ण अंग रहा है | वास्तव में ‘दान’ सनातन समाज-संस्कृति व धर्मं से जुडा अनिवार्य तत्व है | भारत में अनेको उदाहरण है कि जहाँ ऋषि दधीचि ने अपनी हड्डियों का दान किया तथा महाभारत काल में ‘कर्ण’ तो दान के पर्याय बन गये, राजा बालि ने संपूर्ण पृथ्वी ही दान कर दी थी | वास्तव में ऐसा इसलिये भी है क्योंकि हमारा समाज ‘आत्मा’ की पवित्रता पर विश्वास करता है व शरीर सहित समस्त तत्वों को नश्वर मानता है |
वर्तमान भौतिक समाज में भी ’दान’ किसी न किसी रूप में स्वीकार्य है | हमारा ‘’दानपात्र’’ एक ऐसी व्यवस्था है जहाँ Have से Have Not तक की यात्रा करनी है | यह हमारी जरुरत से अतिरिक्त हर वस्तु को जरूरतमंद तक पहुँचाने का माध्यम है | यह सिर्फ वस्तुओ तक सीमित नहीं है बाकि यह हमारी सोच व सहभागिता के विस्तार का भी प्रयास है |
प्रारंभ में यह ‘’दानपात्र’’ खाने की वस्तुओ तक सीमित था परन्तु श्रीमती सोनाली दुबे सह. पुलिस महानिरीक्षक (AIG) इंदौर से चर्चा में यह खाने की एक अल्प व्यवस्था से निकलकर बहुआयामी बना एवं मानव जीवन की समस्त आवश्यकता पूर्ति हेतु ‘’दानपात्र’’ का दायरा बढाया गया | सोच ‘’दानपात्र’’ के माध्यम से मेला या प्रदर्शनी लगाने की है जहाँ लोग स्वेच्छा से हर जरूरतमंद को अपनी गैर जरुरी वस्तु दे सकेंगे |
‘’दानपात्र’’ की नवीन सोच को जिसे सोनाली दुबे ने विस्तृत किया, उसका मुख्य उद्देश्य समाज में व्याप्त गरीबी, असमानता एवं एकाकी जीवन को स्वस्थ सामाजिक परिवेश में बदलना है | यह विश्वास दिलाना व इस सोच को जाग्रत करना है कि ‘’दानपात्र’’ के माध्यम से हम सनातन संस्कृति का एवं हमारे पूर्वजो के कार्य विचार का विस्तार ही कर रहे है | यह ‘’दानपात्र’’ श्रीमती सोनाली दुबे के लिये उसी सोच का अभियान है जैसा की, पूर्व संभागायुक्त श्री संजय दुबे (IAS) ने ‘विद्यादान’ नामक अभियान चलाया था | आज ‘’दानपात्र’’ इंदौर का प्रभावी अभियान है, विश्वास है कि भविष्य में इंदौर ‘’स्वच्छता-विद्यादान-दानपात्र व मैराथन’’ के लिये पुरे देश में जाग जायेगा |